Chapter 1 of the Class 10 Hindi Kavya Bhag in the UP Board syllabus is "सूरदास के पद", a devotional poetic composition by the saint-poet Surdas. These verses belong to the Bhakti Kal of Hindi literature and focus on the childhood plays of Lord Krishna (बाल लीला). The poems are rich in emotional expressions, simple language, and bhakti rasa.
To help students understand and revise effectively, we’ve provided structured notes for this chapter. These notes include the meaning of difficult words, summary in easy language, and all important question-answers as per UP Board guidelines.
In the UP Board Class 10 Hindi syllabus, poetry plays a key role in developing literary appreciation and emotional depth. Chapter 1 Surdas Ke Pad introduces students to devotional poetry from the Bhakti movement, focusing on Lord Krishna’s childhood.
These notes by PW are created by the faculty to help students understand each verse clearly. To prepare well, students should first read the chapter thoroughly and then use these notes to understand the concept and for quick revision.
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PW notes for Surdas Ke Pad bring out the poetic beauty and emotional richness of the text in a simple and student-friendly format. The notes explain the mood of the poet, the cultural background, and how Surdas uses everyday scenes to express divine love. Important lines from the poems, meanings of tough words, and likely exam questions are all covered in one place. These notes are especially useful for students looking to strengthen their interpretation skills and score better in the literature section.
Here are the PW Hindi Kavya notes for Chapter 1 सूरदास के पद (Surdas Ke Pad):
मैं उस भगवान के कृपालुचरणों की वन्दना करता हूँ जिसकी कृपा से अंधकार रुपी मति हटती है| जीवों द्वारा दो आँखों से कुछ दिखलाई पड़ता है और दो कानों से कुछ सुनाई पड़ता है| मूढ़ मनुष्य इन इन्द्रियों के आकर्षण में फँसकर अधर्म की ओर दौड़ते हैं| भगवान के चरणों के आश्रय लिए बिना यह रथ रूपी शरीर अस्थिर है, क्योंकि यह चंचल बुद्धि वाले घोड़े खींचते हैं|
निजानन्द सुख का संकेत आता है| आँखों से उसका प्रकाश देखा जाता है| भगवान् श्रीकृष्ण अपनी लीला भूमि वृन्दावन में एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हैं| गोपियाँ उन्हें बहुत प्रेम करती हैं| उनके सौंदर्य और बाल्य रूप को देखकर अभिभूत हो जाती हैं| वह मन ही मन चाहती हैं कि श्रीकृष्ण उनके घर पधारें| एक गोपी कहती है कि भगवान ने मेरी बात नहीं मानी और मेरे घर नहीं आए| वे तो केवल नन्दबाबा के आँगन में ही किलकारियाँ मारते हैं| गोपी अपने भाग्य को कोसती है और कहती है कि मेरी तो पूजा–वन्दना सब व्यर्थ गई| मुझे द्वार पर खड़ा रहना पड़ेगा और चुपचाप देखना पड़ेगा| मैं कुछ भी नहीं कर पाऊँगी|
बालक श्रीकृष्ण घुटनों पर चल गोपियों के घर जाते हैं और उनके घरों में फैली दही–माखन की हाण्डियों को फोड़ते हैं और मटकी में से माखन लेकर भाग जाते हैं| श्रीकृष्ण यह कार्य चोरी–छिपे करते हैं और गोपियाँ उन्हें पकड़ नहीं पातीं| जब वह पकड़े जाते हैं तो भोलेपन का अभिनय करते हैं और अपनी सफाई देते हैं कि माखन लेने तो बिल्लियाँ आई थीं| यह बाललीला मथुरानाथ श्रीकृष्ण की मोहक लीलाओं को दर्शाती है| वह प्रेम के भूखे हैं| उन्होंने सखा बनकर यह सब कार्य किया है|
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे सखा! तू अपने साथ गाड़ी को खड़ा कर दे तथा तू जो जोड़ता–गाँठता रहता है वो मैं देख रहा हूँ| यह कहकर श्रीकृष्ण स्वयं रथ से कूद जाते हैं और अपने श्रीमुख से शंखध्वनि करते हैं| उनका यह भाव अर्जुन के मोह का नाश करने वाला है| जब बात की बात की आवश्यकता आती है, तो श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि मैं तुझे अपने भाव से वश में कर लूँगा और पथभ्रष्ट नहीं होने दूँगा, जिससे तुझे सत्य ज्ञान की प्राप्ति हो सके| यह पद गीता उपदेश के पहले की भूमिका को स्पष्ट करता है|
इस पद में सूरदास जी द्वारा श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया है| श्रीकृष्ण को बाँसुरी–बंसी बहुत प्यारी थी| वह सुबह उठते ही मुँह धोते और फिर बाँसुरी बजाने लगते थे| गोपियाँ जब श्रीकृष्ण को खेतों की ओर जाते देखतीं तो उनके मन में प्रेम उमड़ पड़ता| सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में ही अपने भक्तों को मुग्ध कर लेते थे और सभी उन्हें निहारते रह जाते थे|
हे राधा! कृष्ण की मूर्खता को कोसोगी क्या? क्यों न उसे अपने मन में बसा लोगी? यह बालक कोई साधारण नहीं है, यह तो लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण हैं| उनकी बाल लीलाएँ अपूर्व और अनोखी हैं| उनका सौंदर्य ऐसा है कि कोई भी उन्हें देखकर आकर्षित हो जाए| गोपियाँ जब उन्हें देखती हैं तो सब कुछ भूल जाती हैं और उनकी मूर्तिमत्ता में लीन हो जाती हैं|
हे उद्धव! तुम हमें बड़ी बातें क्यों बता रहे हो? हमें ज्ञान की बातें नहीं चाहिए| हमें श्रीकृष्ण की यादें चाहिए| उनकी सूरत तथा
हे उद्धव! हमारे साथ वक्त ऐसा बिता कि उसकी यादें आज भी आँखों में आँसू ला देती हैं| हम उस एक दृष्टि को भी नहीं भूल सकते जिसमें श्रीकृष्ण ने हमारे मन को जीत लिया| हम उनके साथ अपने दुख–सुख बाँटते थे| वह हमारे साथी थे, हमारे सखा थे| श्रीकृष्ण की यादें हमें चैन नहीं लेने देतीं| हम तो केवल उसी प्रेम में जीना चाहती हैं| उद्धव से कहती हैं कि श्रीकृष्ण की भक्ति में ही सच्चा सुख है|
राधा की जीवनी की उद्धव को कहती हैं कि हे उद्धव! हमें तुम अपनी विद्या तर्क आदि के लिए मत सुनाओ| श्रीकृष्ण ने हमारे साथ प्रेम किया है, आप जैसे ज्ञानी नहीं| जब आप आये थे तब कृष्ण हमें छोड़कर गए थे| आज भी वह हमारे मन–मंदिर में हैं| हमारी साधना और प्रेम भाव को वह कभी नहीं भुला पाएँगे| उद्धव से कहा गया है कि ज्ञान से बढ़कर भक्ति होती है, इसलिए वह केवल ज्ञान की बातें न करे| गोपियों ने उद्धव को भक्ति और प्रेम की सर्वोच्चता बताई है|
हे उद्धव! श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्वरूप कहने से नहीं थमता| गोपियाँ उनके बाल रूप को निहारते हुए अभिभूत हो जाती हैं| वह श्रीकृष्ण को देखने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं| बाल कृष्ण के नटखट रूप का वर्णन करते हुए सूरदास कहते हैं कि वह रूप आज भी गोपियों की स्मृति में बसता है|
श्रीकृष्ण देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, परंतु उनका पालन–पोषण यशोदा जी द्वारा हुआ था| श्रीकृष्ण के बाल रूप को देखने पर यह तय कर पाना कठिन हो जाता था कि यह देवकी का पुत्र था या यशोदा का| भगवान ने यह लीला विशेष उद्देश्य के लिए की थी| उन्होंने देवकी के गर्भ से उत्पन्न होकर यशोदा की गोद में खेलते हुए दर्शाया है कि वे उद्धारकर्ता हैं|