NCERT Solutions for class-10 Hindi chapter 3 Dev are prepared by academic team of Physics Wallah. All questions of chapter 3 are explained as per the CBSE guideline and academic team of Physics Wallah. Read the theory of chapter 3 try to understand the meaning and then after start writing the questions given in class-10. And take reference from NCERT Solutions of class-10 Hindi. The NCERT Solutions by Physics Wallah provide a complete explanation of problems, you can download in PDF format.
1. कवि ने ‘श्रीबज्रदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें ससांर रूपी मंदिर दीपक क्यों कहा है?
उत्तर:-
देव जी ने ‘श्रीबज्रदूलह’ श्री कृष्ण भगवान के लिए प्रयुक्त किया है। वे सारे संसार में सबसे सुंदर, सजीले, उज्ज्वल और महिमावान हैं। देव जी के अनुसार जिस प्रकार एक दीपक मंदिर में प्रकाश एवं पवित्रता का सूचक है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी इस संसार – रूपी मंदिर में ईश्वरीय आभा का प्रकाश एवं पवित्रता का संचार करते हैं। अर्थात् उनकी सौंदर्य की अनुपम छटा सारे संसार को मोहित कर देती है।
2. पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर:-
1. अनुप्रास अलंकार :
(1) कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई। में ‘क’ वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है। इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
(2) साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई। इस पंक्ति में ‘प’, ‘व’, ‘ह’ वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
2. रुपक अलंकार
(1) मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई। इस पंक्ति में श्री कृष्ण के मुख की समानता चंद्रमा से की गई है। उपमेय में उपमान का अभेद आरोप किया गया है। इसलिए यहाँ रुपक अलंकार है।
(2) जै जग-मंदिर-दीपक-सुंदर इस पंक्ति में संसार की समानता मंदिर से की गई है। इसके कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोप है इसलिए यहाँ रुपक अलंकार है।
3. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर:-
प्रस्तुत पंक्तियाँ देवदत्त द्विवेदी द्वारा रचित सवैया से ली गई है। इसमें देव द्वारा श्री कृष्ण के सौंदर्य का बखान किया गया है। कृष्ण के अंगों एवं आभूषणों की सुन्दरता का भावपूर्ण चित्रण हुआ है।
देव जी कहते – श्री कृष्ण केपैरों में पायल और कमर में तगड़ी (कमरबन्ध) आभूषण हैं। यह मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे है। कृष्ण की चाल जैसे संगीतमय हो गई है।
श्री कृष्ण के साँवले सलोने शरीर पर पीताम्बर वस्त्र सुशोभित हो रहा है और इसी तरह उनके गले में पड़ी हुई बनमाला बहुत ही सुंदर जान पड़ती है। अर्थात् श्री कृष्ण पीताम्बर वस्त्र व गले में बनमाला धारण कर अलग ही शोभा दे रहे हैं।
‘पाँयनि नूपुर मंजु बजैं’ में अनुप्रासिकता है। इसका नाद सौंदर्य दर्शनीय है।
उक्त पंक्तियों में कटि किंकिनि, पट पीत, हिये हुलसै में ‘क’, ‘प’, ‘ह’ वर्ण कि एक से अधिक बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास की अधिकता मिलती है।
उक्त पंक्तियों में सवैया छंद का सुंदर प्रयोग किया गया है। ब्रज भाषा के प्रयोग से छंद में मधुरता का रस मिलता है।
4. दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
उत्तर:-
1. दूसरे कवियों द्वारा ऋतुराज वसंत को कामदेव मानने की परंपरा रही है परन्तु देवदत्त जी ने ऋतुराज वसंत को कामदेव का पुत्र मानकर एक बालक राजकुमार के रुप में चित्रित किया है।
2. दूसरे कवियों ने जहाँ वसन्त के मादक रुप को सराहा है और समस्त प्रकृति को कामदेव की मादकता से प्रभावित दिखाया है। इसके विपरीत देवदत्त जी ने इसे एक बालक के रुप में चित्रित कर परंपरागत रीति से भिन्न जाकर कुछ अलग किया है।
3. वसंत के परंपरागत वर्णन में फूलों का खिलना, ठंडी हवाओं का चलना, नायक-नायिका का मिलना, झूले झुलना आदि होता था। परन्तु इसके विपरीत देवदत्त जी ने यहाँ प्रकृति का चित्रण, ममतामयी माँ के रुप में किया है। कवि देव ने समस्त प्राकृतिक उपादानों को बालक वसंत के लालन-पालन में सहायक बताया है।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से सर्वथा भिन्न है।
5. ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:-
प्रस्तुत पंक्तियाँ देवदत्त द्विवेदी द्वारा रचित सवैया से ली गई है। इसमें वसंत रुपी बालक का प्रकृति के माध्यम से लालन पालन करते दर्शाया गया है। इस पंक्ति के द्वारा कवि ने वसंत ऋतु की सुबह के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है। वसंत ऋतु को राजा कामदेव का पुत्र बताया गया है। वसंत रुपी बालक, पेड़ की डाल रुपी पालने में सोया हुआ है। प्रात:काल(सुबह) होने पर उसे गुलाब का फूल चुटकी बजाकर जगा रहा है। तात्पर्य यह है कि वसंत में प्रातः ही चारों ओर गुलाब खिल जाते हैं।
6. चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर:-
देवदत्त जी आकाश में चाँदनी रात की सुंदरता अपनी कल्पना के सागर में निम्नलिखित रुपों में देखते हैं –
(1) पूर्णिमा की रात में धरती और आकाश में चाँदनी की आभा इस तरह फैली है जैसे स्फटिक (क्रिस्टल) नामक शिला से निकलने वाली दूधिया रोशनी संसार रुपी मंदिर पर ज्योतित हो रही हो।
(2) देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें वहाँ तक बस चाँदनी ही चाँदनी नज़र आती है। यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले रहा हो। देवदत्त के अनुसार चाँदनी रुपी दही का समंदर समस्त आकाश में उमड़ता हुआ सा नज़र आ रहा है।
(3) धरती पर फैली चाँदनी की रंगत फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान उज्ज्वल है तथा उसकी स्वच्छ्ता और स्पष्टता दूध के बुलबुले के समान झीनी और पारदर्शी है।
(4) कवि देव जब चाँदनी रात में आकाश को निहारते हैं तो तो उन्हें ऐसा भ्रम होता है मानों आकाश के सारे तारे नायिका का वेश धारण कर अपनी सुंदरता की आभा को समस्त आकाश में बिखेर रहे हैं।
(5) देवदत्त के अनुसार चाँदनी में चाँद के प्रतिबिंब में राधा रानी की छवि का आभास प्राप्त होता है।
7. ‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर:-
चन्द्रमा सौन्दर्य का श्रेष्ठतम उदाहरण है परन्तु कवि ने राधिका की सुन्दरता को चाँद की सुन्दरता से श्रेष्ठ दर्शाया है तथा चाँद के सौन्दर्य को राधिका का प्रतिबिम्ब मात्र बताया है। कवि कहना चाहते हैं कि राधिका की सुंदरता और उज्ज्वलता अपरंपार है। यहाँ चाँद के सौन्दर्य की उपमा राधा के सौन्दर्य से नहीं की गई है बल्कि चाँद को राधा से हीन बताया गया है, इसलिए यहाँ व्यतिरेक अलंकार है, उपमा अलंकार नहीं है।
8. तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर:-
कवि ने चाँदनी रात की उज्जवलता का वर्णन करने के लिए स्फटिक शीला से बने मंदिर का, दही के समुद्र का, दूध जैसे झाग, मोतियों की चमक का और दर्पण की स्वच्छ्ता आदिउपमानों का प्रयोग कर कवित्त की सुंदरता में चार चाँद लगा दिया है।
9. पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:-
रीतिकालीन कवियों में देव को अत्यंत प्रतिभाशाली कवि माना जाता है। देव की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. देवदत्त ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि हैं।
2. कवित्त एवं सवैया छंद का प्रयोग है।
3. भाषा बेहद मंजी, कोमलता व माधुर्य गुण को लेकर ओत-प्रोत है।
4. देवदत्त ने प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया है।
5. देव अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग करते हैं।
6. देव के प्रकृति वर्णन में अपारम्परिकता है। उदाहरण के लिए उन्होंने अपने दूसरे कवित्त में सारी परंपराओ को तोड़कर वसंत को नायक के रुप में न दर्शा कर शिशु के रुप मेंचित्रित किया है।
1. अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:-
चाँदनी रात का सौन्दर्य तो बस ! देखते ही बनता है। कल ही पूर्णिमा थी। उज्जवल चाँदनी की सफे़द किरणों से केवल आकाश ही नहीं बल्कि धरती भी जगमगा रही थी। चंद्रमा के प्रकाश से रात में भी सारी चीज़ें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। वातावरण बहुत ही मनोरम था। लोग अपनी घर की छत पर बैठ कर शीतल चाँदनी का आनंद ले रहे थे।
1. Notes on Physics for class-10 Science
2. Notes on chemistry for class-10 Science
3. Notes on Biology for class-10 Science
4.Notes on Mathematics for class-10
1. Chapter wise online test for Physics class 10
2. Chapter wise online test for chemistry class 10
3. Chapter wise online test for Mathematics class 10
4.Chapter wise online test for Biology class 10