Find below NCERT Solutions for Class 10 Hindi of chapter 15 Ravindra Kelekar created by experts faculty of Physics Wallah. NCERT Solutions are accessible in PDF format on Physics Wallah.com.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
1. शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर:-
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग इसलिए होता है क्योंकि शुद्ध सोना बिना किसी मिलावट के होता है। यह पूरी तरह शुद्ध होता है गिन्नी के सोने में थोडा-सा ताँबा मिलाया होता है, इसलिए वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मजबूत भी होता है।
2. प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर:-
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन्हें कहते हैं जो आदर्शों को व्यवहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं।
3. पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर:-
पाठ के सन्दर्भ में शुद्ध आदर्श वह है जिसमें हानि-लाभ की गुंजाइश नहीं होती है। अर्थात् शुद्ध आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी नहीं होती। जिसमें पूरे समाज की भलाई छिपी हुई हो तथा जो समाज के शाश्वत मूल्यों को बनाए रखने में सक्षम हो, वही शुद्ध आदर्श है।
4. लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर:-
जापानी लोग उन्नति की होड़ में सबसे आगे हैं। इसलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात कही है।
5. जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर:-
जापानी में चाय पीने की विधि को “चा-नो-यू” कहते हैं जिसका अर्थ है – ‘टी-सेरेमनी’ और चाय पिलाने वाला ‘चाजिन’ कहलाता है।
6. जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर:-
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वहाँ की सजावट पारम्परिक होती है। प्राकृतिक ढंग से सजे हुए इस छोटे से स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। वहाँ अत्यन्त शांति और गरिमा के साथ चाय पिलाई जाती है। शांति उस स्थान की मुख्य विशेषता है।
• प्रश्न-अभ्यास (लिखित)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
7. शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर:-
शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं की जा सकती। ताँबे से सोना मजबूत हो जाता है परन्तु शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता में शुद्ध आदर्श समाप्त हो जाते हैं। परन्तु जीवन में आदर्श के साथ व्यावाहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावाहारिकता के समावेश से आदर्श सुन्दर व मजबूत हो जाते हैं।
8. चाजीन ने कौनसी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर:-
चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग अर्थात् बड़े ही आराम से,अच्छे व सहज ढंग से की।
9. ‘टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर:-
टी-सेरेमनी में केवल तीन ही लोगों को प्रवेश दिया जाता है। इसका कारण यह है की भाग दौड़ से भरी जिन्दगी से दूर कुछ पल अकेले बिताना है और साथ ही जहाँ इंसान भूतकाल और भविष्यकाल की चिंता से मुक्त हो कर वर्तमान में जी पाए। अधिक आदमियों के आने से शांति के स्थान पर अशांति का माहौल बन जाता है इसलिए यहाँ तीन ही लोगों के प्रवेश की अनुमति है।
10. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर:-
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उनके दिमाग की गति मंद पड़ गई हो। धीरे-धीरे उसका दिमाग चलना भी बंद हो गया यहाँ तक की उन्हें कमरे में पसरे हुए सन्नाटे की आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं। उन्हें लगा कि मानो वे अनंतकाल से जी रहे हैं। वे भूत और भविष्य दोनोँ का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहे हो।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
11. गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:-
गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी उन्होंने अपने सारे आंदोलनों को व्यावहारिकता के स्तर से आदर्शों के स्तर पर चढ़कर चलाया था। इसीलिए उनके सारे आन्दोंलन भारत छोड़ों, सत्याग्रह, असहयोग आंदोंलन, दांडीमार्च सफल हुए। उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपने आदर्शों का हथियार बनाया। इन्हीं सिद्धांतों के बलबूते पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली। उनके नेतृत्व में लाखों भारतीयों ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। देशवासी उनके नेतृत्व को स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे।
12. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:-
सत्य, अहिंसा, परोपकार, ईमानदारी सहिष्णुता आदि मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है क्योंकि आज भी सत्य, और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण और उन्नति नहीं हो सकती है। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम आज भी परोपकार और ईमानदारी के मार्ग पर चले तो समाज को अलगाव से बचाया जा सकता है।
13. अपने जीवन की किसी घटना का उल्लेख कीजिए जब –
शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
उत्तर:-
शुद्ध आदर्श का पालन करने में मैं एक बार खुद ही फँस गया। एक बार एक ट्रैफिक हवलदार को मैंने रिश्वत लेते हुए पकड़ा और उसकी शिकायत उसके बड़े अफसर से कर दी तो उल्टा उसके बड़े अफसर ने सिग्नल तोड़ने के जुर्म में मेरा ही चालान कर दिया।
14. अपने जीवन की किसी घटना का उल्लेख कीजिए जब –
शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर:-
शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देकर एक बार मैंने शिक्षक से शाबाशी भी पा ली और एक विद्यार्थी को नक़ल करने से भी रोक दिया। हुआ यूँ कि एक बार परीक्षा भवन में मेरे आगे बैठा विद्यार्थी नक़ल कर रहा था। मैं उसे रोकना चाह रहा था परन्तु यदि उसकी शिकायत में सीधे जाकर शिक्षक से करता तो बाद में वह मुझसे बदला अवश्य लेता इसलिए मैंने इशारे से शिक्षक को उसकी करतूत बता दी परिणामस्वरूप शिक्षक ने उसकी सारी नक़ल की सामग्री चुपचाप फाड़कर कूड़े में फैंक दी।
15. ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:-
शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट का अर्थ है – आदर्शवाद में व्यवहारवाद को मिला देना। शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है और ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। गाँधीजी व्यवहारिकता की कीमत जानते थे। इसीलिए वे अपना विलक्षण आदर्श चला सके। लेकिन अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे। वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। वे नीचे से ऊपर उठाने का प्रयास करते थे न कि ऊपर से नीचे गिराने का। इसलिए कई लोगों ने उन्हें’प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ भी कहा। इसलिए उनके आदर्श कालजयी हुए।
16. ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर:-
गिन्नी का सोना पाठ के आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है अवसरवादी व्यक्ति सदा अपना हित देखता है। वह प्रत्येक कार्य अपना लाभ-हानि देखकर ही करता है। आज भी समाज के पास जो भी मूल्य हैं वे सब आदर्शवादी द्वारा ही दिए गए हैं। अत: जीवन में आदर्श के साथ सही व्यावहारिकता के मिश्रण का ही महत्त्व है।
17. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:-
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग का मुख्य कारण अमेरिका से आर्थिक प्रतिस्पर्धा को बताया। जिसके परिणामस्वरूप देश के लोग एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं इस कारण वे शारीरिक व् मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह कार्य नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाना स्वाभाविक है।
18. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:-
लेखक के अनुसार सत्य वर्तमान है। उसी में जीना चाहिए। हम अक्सर या तो गुजरे हुए दिनों की बातों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सपने देखते हैं। इस तरह भूत या भविष्य काल में जीते हैं। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। हम जब भूतकाल के अपने सुखों एवं दुखों पर गौर करते हैं तो हमारे दुख बढ़ जाते हैं। भविष्य की कल्पनाएँ भी हमें दुखी करती हैं। क्योंकि हम उन्हें पूरा नहीं कर पाते। जो बीत गया वह सत्य नहीं हो सकता। जो अभी तक आया ही नहीं उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। वर्तमान ही सत्य है जो कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है। वर्तमान ही सत्य है उसी में जीना चाहिए।
निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
19. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उत्तर:-
इस पंक्ति का आशय यह है कि आदर्शवादी लोग समाज को आदर्श रूप में रखने वाली राह बताते हैं। आदर्शवादी लोग ही समाज में मूल्यों की स्थापना करते हैं। जब समाज एक आदर्श स्थापित करता है और जो सबके हित में सर्वमान्य हो जाता है वही आदर्श मूल्य बन जाता है। जबकि व्यवहारिक आदर्शवाद वास्तव में व्यवहारिकता ही है। उसमें आदर्शवाद कहीं नहीं होता है।
20. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उत्तर:-
इस पंक्ति का आशय यह है कि व्यावहारिक आदर्शवाद वास्तव में शुद्ध व्यावहारिकता ही होती है। जब आदर्श और व्यवहार में से लोग व्यावहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और आदर्शों को भूल जाते हैं तब आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है।
21. हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उत्तर:-
इस पंक्ति का आशय यह है कि जापान के लोगों के जीवन की गति इतनी तीव्र हो गई है कि यहाँ लोग सामान्य जीवन जीने की बजाए असामान्य होते जा रहे हैं। जीवन की भाग-दौड़,व्यस्तता तथा आगे निकलने की होड़ ने लोगों का चैन छीन लिया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में अधिक पाने की होड़ में भाग रहा है। इसी कारण वे तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
22. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गुँज रहे हों।
उत्तर:-
इस पंक्ति का आशय यह है कि चाय परोसने वाले ने अपना कार्य इतने सलीके से किया मानो कोई कलाकार बड़ी ही तन्मयता से सुर में गीत गा रहा हो।
• भाषा-अध्ययन
23. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
व्यावहारिकता, आदर्श, विलक्षण, शाश्वत
उत्तर:-
व्यावहारिकता – हमेशा व्यावहारिकता ही काम नहीं आती है।
आदर्श – आदर्श का पालन करने वाले विरले ही होते हैं।
विलक्षण – डॉक्टर सी.वी.रामन विलक्षण वैज्ञानिक प्रतिभा के धनी थे।
शाश्वत – मृत्यु जीवन की शाश्वत सच्चाई है।
24. लाभ – हानि ‘ का विग्रह इस प्रकार होगा – लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए –
(क) माता-पिता =……..
(ख) पाप-पुण्य =……..
(ग) सुख-दुख =………
(घ) रात-दिन =………
(ङ) अन-जल =………
(च) घर-बाहर =……..
(छ) देश-विदेश =……..
उत्तर:-
(क) माता-पिता = माता और पिता
(ख) पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
(ग) सुख-दुख = सुख और दुःख
(घ) रात-दिन = रात और दिन
(ङ) अन्न-जल = अन्न और जल
(च) घर-बाहर = घर और बाहर
(छ) देश-विदेश = देश और विदेश
25. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए –
(क) सफल =
(ख) विलक्षण =
(ग) व्यावहारिक =
(घ) सजग =
(ङ) आदर्शवादी =
(च) शुद्ध =
उत्तर:-
(क) सफल = सफलता
(ख) विलक्षण = विलक्षणता
(ग) व्यावहारिक = व्यावहारिकता
(घ) सजग = सजगता
(ङ) आदर्शवादी = आदर्शवादिता
(च) शुद्ध = शुद्धता
26. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए –
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में ‘सोना’ का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग अलग सन्दर्भों में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर:-
उत्तर-प्रश्न का उत्तर जाँच लो। (ज़वाब) | उत्तर दिशा की तरफ़ मुड़ जाना। (दिशा) |
कर-प्रधानमंत्री के कर- कमलों दवारा 2 अक्तूबर को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई। (हाथ) | अब कर चोरी करने वालों की खैर नहीं हैं। (टैक्स) |
अंक-इस नाटक के तीन अंक है। (भाग) | इस बार की अर्धवार्षिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक लाकर तो तुमने हमारा नाम रोशन कर दिया। (नंबर) |
नग-वाह! इस नग कीचमक तो देखो। (चमकीलापत्थर) | कार में 12 नग किसकेरखें हैं? (सामान) |
27. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए –
(क) 1.अँगीठी सुलगायी।
2.उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1.चाय तैयार हुई।
2.उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1.बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2.तौलिये से बरतन साफ किए।
उत्तर:-
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन आया और उसने तौलिये से बर्तन साफ किए।
28. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए –
(क)1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में उसे चा – नो – यू कहते हैं।
(ख)1. बाहर बेढब – सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग)1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर:-
(क) जापानी में इसे चा-नो-यू कहते हैं, जो चाय पीने की एक विधि है।
(ख) बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था, जो पानी भरा हुआ था।
(ग) जैसे ही चाय तैयार हुई वैसे ही उसने प्यालों में भरकर हमारे सामने रख दी।